श्री भैरव देव

श्री भैरव देव की सम्पूर्ण जानकारी

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श्री भैरव नाथ का परिचय

‘शिवपुराण’ के अनुसार कार्तिक मास के कृष्णपक्ष की अष्टमी को मध्यान्ह में भगवान शिव के रुधिर (रक्त) से भैरव की उत्पत्ति हुई थी, अतः इस तिथि को भैरवाष्टमी के नाम से भी जाना जाता है। पौराणिक आख्यानों के अनुसार अंधकासुर नामक दैत्य अपने कृत्यों से अनीति व अत्याचार की सीमाएं पार कर रहा था, यहाँ तक कि एक बार घमंड में चूर होकर वह भगवान शिव तक के ऊपर आक्रमण करने का दुस्साहस कर बैठा. तब उसके संहार के लिए शिव के रुधिर से भैरव की उत्पत्ति हुई। कुछ पुराणों के अनुसार शिव के अपमान-स्वरूप भैरव की उत्पत्ति हुई थी। यह सृष्टि के प्रारंभकाल की बात है। सृष्टिकर्ता ब्रह्मा ने भगवान शंकर की वेशभूषा और उनके गणों की रूपसज्जा देख कर शिव को तिरस्कारयुक्त वचन कहे। अपने इस अपमान पर स्वयं शिव ने तो कोई ध्यान नहीं दिया, किन्तु उनके शरीर से उसी समय क्रोध से कम्पायमान और विशाल दण्डधारी एक प्रचण्डकाय काया प्रकट हुई और वह ब्रह्मा का संहार करने के लिये आगे बढ़ आयी। ब्रम्हा तो यह देख कर भय से चीख पड़े। शंकर द्वारा मध्यस्थता करने पर ही वह काया शांत हो सकी। रूद्र के शरीर से उत्पन्न उसी काया को महाभैरव का नाम मिला। बाद में शिव ने उसे अपनी पुरी, काशी का नगरपाल नियुक्त कर दिया। ऐसा कहा गया है कि भगवान शंकर ने इसी अष्टमी को ब्रह्मा के अहंकार को नष्ट किया था, इसलिए यह दिन भैरव अष्टमी व्रत के रूप में मनाया जाने लगा। भैरव अष्टमी 'काल' का स्मरण कराती है, इसलिए मृत्यु के भय के निवारण हेतु बहुत से लोग भैरव की उपासना करते हैं। भैरव की पत्नी देवी पार्वती की अवतार हैं जिनका नाम भैरवी है जब भगवान शिव ने अपने अंश से भैरव को प्रकट किया था तब उन्होंने माँ पार्वती से भी एक शक्ति उत्पन्न करने को कहा जो भैरव की पत्नी होंगी तब माँ पार्वती ने अपने अंश से देवी भैरवी को प्रकट किया जो शिव के अवतार भैरव की पत्नी हैं | ऐसा भी कहा जाता है की ,ब्रह्मा जी के पाँच मुख हुआ करते थे तथा ब्रह्मा जी पाँचवे वेद की भी रचना करने जा रहे थे,सभी देवो के कहने पर महाकाल भगवान शिव ने जब ब्रह्मा जी से वार्तालाप की परन्तु ना समझने पर महाकाल से उग्र,प्रचंड रूप भैरव प्रकट हुए और उन्होंने नाख़ून के प्रहार से ब्रह्मा जी की का पाँचवा मुख काट दिया, इस पर भैरव को ब्रह्मा हत्या का पाप भी लगा। भगवान शिव की सहायता से भैरव को काशी में ब्रह्महत्या के पाप से मुक्ति मिली और भगवान शिव ने भैरव को काशी का कोतवाल भी नियुक्त किया। काशी वासियों के लिए भैरव पूजा अनिवार्य बताई गई है। काशी में श्री काशीविश्वनाथ मंदिर और उज्जैन में श्री महाकाल मंदिर में भगवान शिव के दर्शन के बाद जब तक भैरव जी के दर्शन न करें तो न ही श्री महाकाल ज्योतिर्लिंग और न ही श्री विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग के दर्शनों का फल नहीं मिलता।

श्री भैरव उपासना की शाखाएं

श्री भैरव देव जी उपासना की शाखाएं

कालान्तर में भैरव-उपासना की दो शाखाएं- बटुक भैरव तथा काल भैरव के रूप में प्रसिद्ध हुईं। जहाँ बटुक भैरव अपने भक्तों को अभय देने वाले सौम्य स्वरूप में विख्यात हैं वहीं काल भैरव आपराधिक प्रवृत्तियों पर नियंत्रण करने वाले प्रचण्ड दंडनायक के रूप में प्रसिद्ध हुए। वहीं काल भैरव को भैरवनाथ का युवा रूप तो बटुक भैरव को भैरवनाथ का बाल रूप कहा गया है।

॥ जय भैरव देवा…॥

पुराणों में श्री भैरव का उल्लेख

तंत्रशास्त्र में अष्ट-भैरव का उल्लेख है –

असितांग-भैरव, रुद्र-भैरव, चंद-भैरव, क्रोध-भैरव, उन्मत्त-भैरव, कपाली-भैरव, भीषण-भैरव तथा संहार-भैरव।

कालिका पुराण में भैरव को नंदी, भृंगी, महाकाल, वेताल की तरह भैरव को शिवजी का एक गण बताया गया है जिसका वाहन कुत्ता है। ब्रह्मवैवर्तपुराण में भी

महाभैरव, संहार भैरव, असितांग भैरव, रुद्र भैरव, कालभैरव क्रोध भैरव ताम्रचूड़ भैरव तथा चंद्रचूड़ भैरव नामक आठ पूज्य भैरवों का निर्देश है। इनकी पूजा करके मध्य में नवशक्तियों की पूजा करने का विधान बताया गया है। शिवमहापुराण में भैरव को परमात्मा शंकर का ही पूर्णरूप बताते हुए लिखा गया है।

भैरव: पूर्णरूपोहि शंकरस्य परात्मन:।

मूढास्तेवै न जानन्ति मोहिता:शिवमायया॥

श्री भैरव साधना व ध्यान

श्री भैरव साधना व ध्यान

ध्यान के बिना साधक मूक सदृश है, भैरव साधना में भी ध्यान की अपनी विशिष्ट महत्ता है। किसी भी देवता के ध्यान में केवल निर्विकल्प-भाव की उपासना को ही ध्यान नहीं कहा जा सकता। ध्यान का अर्थ है - उस देवी-देवता का संपूर्ण आकार एक क्षण में मानस-पटल पर प्रतिबिम्बित होना। श्री बटुक भैरव जी के ध्यान हेतु इनके सात्विक, राजस व तामस रूपों का वर्णन अनेक शास्त्रों में मिलता है। जहाँ सात्विक ध्यान - अपमृत्यु का निवारक, आयु-आरोग्य व मोक्षफल की प्राप्ति कराता है, वहीं धर्म, अर्थ व काम की सिद्धि के लिए राजस ध्यान की उपादेयता है, इसी प्रकार कृत्या, भूत, ग्रहादि के द्वारा शत्रु का शमन करने वाला तामस ध्यान कहा गया है। ग्रंथों में लिखा है कि गृहस्थ को सदा भैरवजी के सात्विक ध्यान को ही प्राथमिकता देनी चाहिए।

भारत में श्री भैरव के प्रसिद्ध मंदिर

श्री भैरव के प्रसिद्ध मंदिर

राजस्थान के दौसा जिले में बांदीकुई के पास सबडावली गांव में पहाड़ पर श्री चौमुखा भैरवनाथ जी सुप्रसिद्ध मंदिर स्थित है। जहां पर प्रत्येक शनिवार को बड़ी संख्या में श्रद्धालु पधारते हैं। तथा वहां पर भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया को बड़ा मेला लगता है। राजस्थान के चूरू जिले में नौसरिया गाव में भी भेरूजी के मंदिर है भारत में भैरव के प्रसिद्ध मंदिर हैं जिनमें काशी का काल भैरव मंदिर सर्वप्रमुख माना जाता है। काशी विश्वनाथ मंदिर से भैरव मंदिर कोई डेढ़-दो किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। दूसरा नई दिल्ली के विनय मार्ग पर नेहरू पार्क में बटुक भैरव का पांडवकालीन मंदिर अत्यंत प्रसिद्ध है। तीसरा उज्जैन के काल भैरव की प्रसिद्धि का कारण भी ऐतिहासिक और तांत्रिक है। नैनीताल के समीप घोड़ाखाल का बटुकभैरव मंदिर भी अत्यंत प्रसिद्ध है। यहाँ गोलू देवता के नाम से भैरव की प्रसिद्धि है। उत्तराखंड चमोली जिला के सिरण गाँव में भी भैरव गुफा काफी प्राचीन है। उत्तराखंड में ग्राम मोल्ठी पट्टी पैडुलस्यूं जिला पौड़ी गढवाल मे बालभैरव (जिन्हे स्थानीय भाषा मे नादबुद्व भैरव कहा जाता है) का अति प्राचीन भव्य मंदिर है. मान्यता है कि इस मंदिर का निर्माण कत्यूरी शासको (700 से 1000 ईस्वी) के समय हुआ. इसके अलावा शक्तिपीठो और उपपीठों के पास स्थित भैरव मंदिरों का महत्व माना गया है। जयगढ़ के प्रसिद्ध किले में काल-भैरव का बड़ा प्राचीन मंदिर है जिसमें भूतपूर्व महाराजा जयपुर के ट्रस्ट की और से दैनिक पूजा-अर्चना के लिए पारंपरिक-पुजारी नियुक्त हैं। । जयपुर जिले के चाकसू कस्बे मे भी प्रसिद बटुक भैरव मंदिर हे जो लगभग आठवी शताब्दी का बना हुआ हे मान्यता हे की जब तक कस्बे के लोग बारिश ऋतु से पहले बटुक भैरव की पूजा नहीं करते तब तक कस्बे मे बारिश नहीं आती । नाथद्वारा के पास ही शिशोदा गाव में भैरुनाथ का प्रसिद्ध मन्दिर है जो सन 1400 ईसा पूर्व का है। मध्य प्रदेश के सिवनी जिले के ग्राम अदेगाव में भी श्री काल भैरव का मंदिर है जो किले के अंदर है जिसे गढ़ी ऊपर के नाम से जाना जाता है कहते हैं औरंगजेब के शासन काल में जब काशी के भारत-विख्यात विश्वनाथ मंदिर का ध्वंस किया गया, तब भी कालभैरव का मंदिर पूरी तरह अछूता बना रहा था। जनश्रुतियों के अनुसार कालभैरव का मंदिर तोड़ने के लिये जब औरंगज़ेब के सैनिक वहाँ पहुँचे तो अचानक पागल कुत्तों का एक पूरा समूह कहीं से निकल पड़ा था। उन कुत्तों ने जिन सैनिकों को काटा वे तुरंत पागल हो गये और फिर स्वयं अपने ही साथियों को उन्होंने काटना शुरू कर दिया। बादशाह को भी अपनी जान बचा कर भागने के लिये विवश हो जाना पड़ा। उसने अपने अंगरक्षकों द्वारा अपने ही सैनिक सिर्फ इसलिये मरवा दिये किं पागल होते सैनिकों का सिलसिला कहीं खु़द उसके पास तक न पहुँच जाए।

भारतीय संस्कृति प्रारंभ से ही प्रतीकवादी रही है और यहाँ की परम्परा में प्रत्येक पदार्थ तथा भाव के प्रतीक उपलब्ध हैं। यह प्रतीक उभयात्मक हैं - अर्थात स्थूल भी हैं और सूक्ष्म भी। सूक्ष्म भावनात्मक प्रतीक को ही कहा जाता है -देवता। चूँकि भय भी एक भाव है, अत: उसका भी प्रतीक है - उसका भी एक देवता है और उसी भय का हमारा देवता हैं।

।। ॐ काळभैरवाय नम:।।

श्री भैरव बाबा का चोला व पूजा की सामग्री

चोला व पूजनी सामग्री

सिंदूर 250g

हिरमिच 250g

चमेली का तेल की शीशी 200g

पतासा 250g

मिश्री 250g

बरफी 300g

लॉन्ग 20₹

अगरबत्ती 30₹

धूप 20₹

लोहबान 10₹

लक्ष्मण रेखा 10₹

चन्दन चुरा 10₹

नागर मोथा 10₹

कपूर खुल्ला 20₹

किसमिश 20₹

इलायची 20₹

चिरोंजी - 10₹

गुगड़ 10₹

रुई 10₹

कलाय डोरा 10₹

अगर तगर 10₹

कपूर काचरी 10₹

बारछल 10₹

छाप छबीला 10₹

सुपारी - 5 नग

बादाम - 5 नग

डोडा - 5 नग

मखाना - 5 नग

अखरोट - 5 नग

जायफल -1

माचिस - 1

सिगरेट - 3

सेंट की शीशी - 2

नारियल - 5

केसर की छोटी डिब्बी - 1

दाख - 5 नग

छुआरा - 5 नग

काजु - 5 नग

पन्नी (पीली - 5 ,हरी - 5 ,गुलाबी - 4, नीली - 2, लाल - 2)

वर्क -2 पैकेट,

कस्तूरी की डिब्बी - 1

झाड़ू बांस का - 1

झण्डा पचरंगी - 2

सफेद - 1

पान मीठा - 2

समस्त सामग्री बाबा का पूजन हेतू

श्री भैरव विशेष मेला व दर्शन

भक्त जनों के लिए विशेष मेला व देव-दर्शन

बैशाख कृष्ण पक्ष सप्तमी

भाद्रपद कृष्ण पक्ष सप्तमी

माघ कृष्ण पक्ष सप्तमी

आश्विन माह नवरात्रा

होली

दशहरा

दीपावली

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